(GIST OF YOJANA) डिजिटलीकरण के जरिये विकास [June -2018]


(GIST OF YOJANA) डिजिटलीकरण के जरिये विकास [June -2018]


डिजिटलीकरण के जरिये विकास

दुनिया तेजी से डिजिटलीकरण की तरफ बढ़ रही है। चाहे उद्यमों के जरिये उत्पाद बनाने और उसे बचने का मामला हो, लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी की बात हो या सरकार द्वारा नागरिकों को सामाजिक सेवाएं प्रदान करना हो, तमाम जगहों पर यह प्रक्रिया हावी है। बड़े पैमाने पर और शानदार रफ्तार से डिजिटल डेटा के उत्पादन, डेटा स्टोरेज की घटती कीमत और बेहतर कंप्यूटर इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण डिजिटलीकरण अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है और इसे अब चौथी औद्योगिक क्रांति का नाम दिया जा रहा है। भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों ने डिजिटल इंडिया की बदलावकारी संभावनाओं की पहचान की है और इन प्रौद्योगिकियों को सक्रियता से अपनाना शुरू किया है।
भारत में पिछले कुछ साल में बिजनेस प्रोसेस इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी और डेटा एनालिटिक्स के जरिये शासन प्रणाली को नए सिरे से पारिभाषित किया गया है। दरअसलप्रौद्योगिकी सरकार के कार्यक्रमों की रूपरेखा और अमल को नई शक्ल दे रही है। प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के कारण सिस्टम में बेहतरी आई है, दक्षता बढ़ी है और शासन प्रणाली पर इसका गहरा असर दिखना शुरू हो गया है।
सरकार ने कुछ बड़े और छोटे ई-गवर्नेस और डिजिटलीकरण कार्यक्रमों को शुरू कियाजिन सबको बाद में 'डिजिटल इंडिया अभियान के दायरे में लाया गया। 'मोबाइल' और 'क्लाउडजैसे नए प्लेटफॉर्म को तेजी से अपनाए जाने के कारण और ‘ई-क्रांति के तहत 31 मिशनकारी परियोजना: राष्ट्रीय ईगवर्नेस प्लान 2' की शुरुआत के बाद डिजिटल इंडिया अभियान को फिर से तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत महसूस की गई। गवर्नेस (शासन प्रणाली) को बदलने के लिए ई-गवर्नेस को बदलना' के नारे के साथ इस पर फिर से फोकस करने की बात हुई। ई-गवर्नेस की सभी परियोजनाएं अब ई-क्रांति के अहम सिद्धातों का पालन करती हैं- मसलन 'अनुवाद नहीं, बदलाव, 'एकीकृत सेवाएंन कि निजी सेवाएं, 'हर एमएमपी में गवर्नमेंट प्रोसेस रीइंजीनियरिंग (जीपीआरजरूरी होगा', 'मांग आधारित आईसीटी अवसरचना ', ‘क्लाउड बाय डिफॉल्ट', 'मोबाइल फर्स्ट, मंजूरी की प्रक्रिया को तेज करना' , 'भाषा का स्थानीयकरण, 'राष्ट्रीय जीआईएस, 'सिक्योरिटी और इलेक्ट्रॉनिक डेटा संरक्षण'।

वित्तीय समावेशन की राह का अर

पहले की सरकारें जिस तरह से काम करती थीं, यह उसके बिल्कुल उलट है। केरल में अपने कार्यकाल के दौरान मुझे मत्स्य क्षेत्र में काम करने का मौका मिला। मेरा काम पारंपरिक मछुआरों की आजीविका को बेहतर बनाना था। इस क्षेत्र में बिचौलियों की भरमार थी और मछुआरों को मछली के बाजार मूल्य का महज 25 फीसदी मिलता था। सरकार ने सहायता समूह तैयार किया और मछुआरों को नई प्रौद्योगिकी मुहैया कराई। उनकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए फाइबरग्लास क्राफ्ट, आउटबोर्ड मोटर और मछली पकड़ने का बेहतर जाल उपलब्ध कराया गया। समुद्री स्तर पर ही नीलामी की प्रणाली भी शुरू की गई, ताकि रोजाना मछली पकड़ने से होने वाली उनकी कमाई उनके बैंक खातों में जमा हो सके। सबसे बड़ी चुनौती मछुआरों के लिए बैंक खाते खुलवाना थी। बैंक मैनजरों से संपर्क साधकर इस काम को करवाने में 10 महीने का वक्त लगा। केवाईसी की प्रक्रिया का मामला डरावना सपना जसा था।
लेकिन पिछले महीने जब मैं बैंक की एक शाखा में गया तो मेरे इस अनुभव के उलट मेरे हाथ के सहारे मेरी बायोमेट्रिक का इस्तेमाल कर महज एक मिनट में मेरा खाता

खुल गया। इस बाबत प्रक्रिया का वक्त

10 महीने से घटकर 1 मिनट होना अहम बदलाव है । जेएएम (जन धन-आधार-मोबाइल) की तिकड़ी देश की विभिन्न सेवाओं के लिए बुनियादी डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिनमें ई-केवाईसी, ई-हस्ताक्षर, तत्काल पेमेंट (यूपीआई) और फाइल स्टोरेज (डिजिलॉकर) शामिल हैं। दुनिया भर में वित्तीय समावेशन के विस्तार के लिए यह सबसे बड़ी वजह है। विश्व बैंक की तरफ से जारी वैश्विक फिनडेक्स रिपोर्ट 2017 के मुताबिक, 2014-2017 के दौरान खुले सभी बैंक खातों में 55 फीसदी खाते भारत में खोले गए। साल 2014 में देश के 53 फीसदी लोगों का बैंकों में खाता था और जन धन योजना के कारण 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 80 फीसदी हो गयाइस योजना के तहत 2014 से अब तक 31 करोड़ से भी ज्यादा नए बैंक खाते खुल चुके हैं।

उपभोक्ता भुगतान के तौर-तरीकों में ' बदलाव

यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) और भारत बिल पेमेंट सिस्टम (बीबीपीएस) ने निजी क्षेत्र द्वारा कई इनोवेटिव ऐप बनाने के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। इस तरह लोगों के लिए बिलों का भुगतान करना काफी आसान हुआ है। बीबीपीएस में भुगतान किए गए बिलों की संख्या अप्रैल 2017 के मुकाबले दोगुनी हो गई है। बीबीपीएस को पिछले साल अप्रैल में पायलट आधार पर शुरू किया गया। था। संबंधित अवधि में इस प्लेटफॉर्म पर भुगतान किए गए बिलों का मूल्य तकरीबन 46 फीसदी बढ़ गया। केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 के आखिर तक भारत में बिल भुगतान का बाजार 5.85 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का था, जिनमें से 70 फीसदी बिलों का भुगतान कैश या चेक के जरिये किया जा रहा था। केपीएमजी के अनुमान के मुताबिक, साल 2020 तक भारत में बिल भुगतान का बाजार बढ़कर 9.4 लाख करोड़ हो जाने की संभावना है। भारत इंटरफेस फॉर मनी (भीम) यूपीआई के कारण डिजिटल भुगतान का काम अब काफी सरल हो गया है। हम गूगल तेज और वॉट्सऐप पेमेंट के आगमन को पहले ही देख चुके हैं। वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में संख्या के हिसाब से डिजिटल पेमेंट लेनदेन में एक अरब से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई, जबकि मूल्य के हिसाब से बढ़ोतरी का यह आंकड़ा एक लाख करोड़ से भी ज्यादा रहा। नए खिलाड़ियों और नई प्रौद्योगिकी के साथ इसमें उथलपुथल का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। क्रेडिट सुईस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 1 तक भारत के डिजिटल पेमेंट का आंकड़ा 1 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाने का अनुमान है।

राजकोषीय तंत्र का डिजिटलीकरण

प्रत्यक्ष करों के संग्रह की प्रणाली के डिजिटलीकरण से काफी फायदे हुए हैं। आयकर विभाग को वित्त वर्ष 2017-18 में .8 करोड़ आयकर रिटर्न मिले यानि इसमें 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। साथ ही, एक करोड़ से भी ज्यादा नए रिटर्न दाखिल किए गएऐसे 98.5 फीसदी रिटर्न ऑनलाइन दाखिल किए गए वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को लागू किए जाने से अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में 50 फीसदी की बढ़ोतरी (जीएसटी से पहले दौर के मुकाबले) हुई। इससे 34 लाख नए अप्रत्यक्ष करदाता बने और बड़े पैमाने पर लोग अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जुड़े।

डिजिटल प्रणाली के जरिये शासन और निगरानी

प्रधानमंत्री ने प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के जरिये प्रगति अभियान के तहत परियोजनाओं पर तेजी से काम सुनिश्चित करने में भौगोलिक सीमाओं और विभागीय अडचनों को आड़े नहीं दिया है। अटकी पड़ी सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं और अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं की निगरानी और देखरेख के लिए भी प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर केंद्र और राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों से संवाद कायम किया है। प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये प्रगति की 25 बैठकों में हिस्सा लिया और 105 लाख करोड़ से भी ज्यादा की 227 परियोजनाओं को मंजूरी दी। हाल में प्रस्तावित आयुष्मान भारत योजना के तहत प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केद्रों को डिजिटल तौर पर जिला अस्पतालों से जोड़ा जाएगा। इससे 5 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा के साथ कैशलेसपोर्टेबल स्कीम के जरिये स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित की जाएंगी। इस स्वास्थ्य बमा के दायरे में 50 करोड़ लोग होंगे।

आधुनिकतम प्रौद्योगिकियों का असर

एक्सेंचर के विश्लेषण के मुताबिक, साल 2035 तक देश की अर्थव्यवस्था में आफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) 957 अरब डालर क मौजूदा सकल मूल्य का 15 फीसदी तक योगदान कर सकता है। भारत के पास अपनी तरह की चुनौतियां हैं, जिन्हें कृत्रिम मेधा के उपयोग से दूर किया जा सकता है। इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट-इंटरनेशनल डेटा कॉरपोरेशन (आईडीसी) की हालिया स्टडी में कहा गया है कि डिजिटल बदलाव से 2021 तक भारत की जीडीपी में 154 अरब डॉलर का इजाफा होगा और इसकी वृद्धि दर में सालाना 1 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। पिछले साल यानि 2017 में देश की जीडीपी का तकरीबन 4 फीसदी हिस्सा डिजिटल उत्पादों और सेवाओं से हासिल किया गया। ये उत्पाद और सेवाएं सीधे तौर पर क्लाउड, इंटरनेट ऑफ थिग्स (आईओटी) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल से तैयार हुई थीं।
केद्र सरकारी योजनाओं में नई प्रौद्योगिकी के और इसकी संभावनाओं का इस्तेमाल विकल्प तलाश रहा है। नीति योग को कृत्रिम मेधा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है और आयोग मंत्रालयों, अकादमिक हलकों, उद्योग जगत शोधकर्ताओं और स्टार्टअप के साथ बातचीत कर रहा है। प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था और शासन प्रणाली के लिए इसकी उपयोगिता इससे जुड़े जोखिम और भविष्य में इसके विकास की राह को समझने के लिए यह एक अच्छी कोशिश है। इसके अलावा , आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के फायदे के आकलन और उसे प्रदर्शित करने के लिए नीति आयोग ने राष्ट्रीय प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में इन प्रौद्योगिकियों पर अमल का काम शुरू किया है। इन्हें प्रफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट (पीओसी) परियोजना कहा जाता है और कृषि, जमीन के रिकॉर्ड, स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल कर इनका परीक्षण किया। जा रहा है। इन पीओसी का लक्ष्य समस्याओं को हल करने में प्रौद्योगिकी के असर का परीक्षण करना है।
तक भारत एक जटिल देश रहा है, जिसके कारण आम आदमी के लिए सरकारी सुविधाओं की उपलब्धता हासिल करना मुश्किल रहा है। तमाम क्षेत्रों में तेजी से डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाए जाने से चीजें आसान हो रही हैं और मानवीय हस्तक्षेप के तमाम तरीके खत्म हो रहे हैं। इसका (डिजिटल प्रौद्योगिकी का) शासन प्रणाली की दक्षता और प्रभाव पर व्यापक असर हुआ है।

जैव ईंधन पर राष्ट्रिय निति - 2018 को मंजूरी

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल समिति ने जैव ईंधन पर राष्ट्रिय निति - 2018 को मंजूरी दे दी है।
निति में गन्ने का रस, चीनी वाली वस्तुओं जैसे चुकुन्दर, स्वीट सौरगम, स्टार्च वाली वस्तुएं जैसे - भुट्टा, कसावा, मनुष्य के उपभोग के लिए अनुप्युक्त बेकार अनाज जैसे गेंहू , टूटा चावल, सड़े हुए आलू के इस्तेमाल की अनुमति देकर इथनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल का दायरा बढ़ाया गया है। अतिरिक्त उत्पादन के चरण के दौरान किसानो को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलने का खतरा होता है। इसे ध्यान में रखते हुए इस निति में राष्ट्रिय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंजूरी से इथनॉल उत्पादन के लिए पेट्रोल के साथ उसे मिलाने के लिए अतिरिक्त अनाजों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई।
निति गैर - खाद्य तिलहनों, इस्तेमालो किए जा चुके खाना पकने के तेल, लघु गाभ फसलों से जैव डीजल उत्पादन के लिए आपूर्ति श्रंखला तंत्र स्थापित करने को प्रोत्साहन दिया गया।
भारत में जैव ईंधनों का रणनीतिक महत्व है क्योकि ये सरकार की वर्तमान पहलों मेक इन इण्डिया, स्वच्छ भारत अभियान, कौशल विकास के अनुकूल है और किसानो की आमदनी दोगुनी करने, आयत कम करने, रोजगार सृजन, कचरे से धन सृजन, कचरे से सृजन के महत्वकांक्षी लक्ष्यों को जोड़ने का अवसर प्रदान करता है। भारत का जैव ईंधन कार्यक्रम जैव ईंधन उत्पादन के लिए फीडस्टॉक की दीर्घकालिक अनुलब्धता और परिमाण के कारण बढे पैमाने पर प्रभावित हुआ है।

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Courtesy: Yojana