(The Gist of Kurukshetra) रेशम, लाख कीट और मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन [April-2018]


(The Gist of Kurukshetra) रेशम, लाख कीट और मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन [April-2018]


रेशम, लाख कीट और मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन

सरकार ने 2022 तक किसानो की समदानी दोगुनी करने का संकल्प लिया है। इस बार के बजट में भी इसकी झलक दिखाई पड़ती है। सरकार का मानना है कि कृषि से जुड़े व्यवसाय के समृद्ध होने से ही किसान समृद्ध होंगे। किसानों को समय पर ऋण उपलब्ध कराना भी अति आवश्यक है। इसके लिए बजट में कृषि क्षेत्र क कुल क्रेडिट जो विगत वर्ष में 10 लाख करोड़ रुपये था, को इस वर्ष बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपये किया गया है। पशुपालन एवं मात्स्यिकी के क्षेत्र में कार्य करने वाले किसानों को भी किसान क्रेडिट द्वारा यह ऋण उपलब्ध कराया जाएगा। सरकार भविष्य में मधुमक्खी पालनकीट पालन करने वालों को भी यह सुविधा दे सकती है। कृषि तथा गैर-कृषि क्रियाकलापों को बढ़ाने के लिए इस वर्ष बजट में 1290 करोड़ रुपये की निधि के साथ प्रस्तावित किया गया है। इसके माध्यम से न सिर्फ छोटे उद्योग स्थापित किए जाएंगे बल्कि रोजगार के नए द्वार भी खुलेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे देश में औषधीय तथा सुगंधित पौधों की खेती के लिए भी अनुकूल कृषि जलवायु क्षेत्र उपलब्ध है। इस बजट में इस प्रकार की खेती को भी बढ़ावा दिए जाने की घोषणा की गई है। इससे न सिर्फ किसानों को वरन् लघु एवं सीमांत उद्योगों का विकास भी हो सकेगा। इसके लिए बजट में 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं बागवानी के लिए कलस्टर बेस्ड फार्मिग कराने पर भी जोर है। इससे साफ है कि कृषि के साथ बागवानी और कीट पालन को बढ़ावा मिलेगा। सरकार की ओर से विभिन्न योजनाओं के तहत मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए मधुबक्सा व मधु निकासी खरीदने के लिए अलग से अनुदान राशि दी जाएगी।


युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए खादी ग्रामोद्योग विभाग लगातार पहल कर रहा है। खादी ग्रामोद्योग के वन आधारित उद्योग की श्रेणी में लाख कीट निर्माण शामिल किया गया है। इसी तरह कृषि आधारित उद्योग श्रेणी में मधुमक्खी पालन शामिल है। इस योजना में दस लाख तक की परियोजना के लिए संबंधित बैंक से ऋण मिल सकता है। इस पर करीब चार प्रतिशत का ब्याज देना पड़ता है। उससे ऊपर बैंक की जो भी ब्याज दर होगी अधिकतम दस फीसदी तक का भुगतान बैंक शाखा को सीधे प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है। इसके तहत सामान्य जाति की महिलाअनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्गअल्पसंख्यक भूतपूर्व सैनिक, विकलांग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जीरो प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। चयनित लाभार्थियों की आयु 18 से 45 के बीच होनी चाहिए। चयनित लाभार्थियों में से 50 प्रतिशत अनु.जाति/जनजाति अन्य पिछड़ा वर्ग महिला, विकलांग, अल्पसंख्यक, तपूर्व सैनिक होने चाहिए। कौशल सुधार योजनान्तर्गत भी मौनपालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। योजनांतर्गत चयनित उद्यमियों को उनमें निहित कौशल के विकास हेतु कौशल सुधार प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। कौशल सुधार प्रशिक्षण योजनांतर्गत स्किल अपग्रेडेशन एंड प्रमोशन हेतु 15 दिवसीय प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। उपरोक्त क्रम में चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में शासन द्वारा निम्नानुसार मदों में लाभार्थियों के प्रशिक्षण हेतु प्रावधान ले बजट के सापेक्ष वित्तीय स्वीकृति जारी. की गई है।

मधुमक्खी पालन

किसान खेती के साथ मधुमक्खी पालन करके दोहरा लाभ कमा सकते हैं। एक तरफ मधु से फायदा मिलता है तो दूसरी तरफ जहां इनका पालन किया जाता है उसके आसपास परागण की वजह से उत्पादन बढ़ जाता है। यह एक ऐसा व्यवसाय है जो बहुत कम लागत से शुरू किया जा सकता है। मधुमक्खी पालनएक तरह से कम लगत वाला कुटीर उद्योग है। ग्रामीण भूमिहीन बेरोजगार किसानो के लिए आमदनी का एक साधन बन गया है। मधुमक्खी पालन से जुड़े कार्य जैसे बढ़ईगिरी, लोहरगिरि एंव शहद विपणन में भी रोजगार का अवसर मिलता है। मधुमक्खियों मौन समुदाय में रहने वाले कीलो वर्ग की जंगली जिव है। इन्हे उनकी आदतों के अनुकूल कृत्रिम ग्रह (हाईव) में पालकर उनकी वृद्धि करने तथा शहद एंव मोम आदि प्राप्त करने को मधुमक्खी पालन कहते है। शहद एंव मोम

एप्कारी सहायता

सरकारी की ओर से मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों को आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराई जाएगी। राष्ट्रीय कृषि विकास योजनांतर्गत किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान उद्यान विभाग से मिलता है। इसके अलावा समय-समय पर मधुमक्खी पालनों के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत अनुदान की व्यवस्था की जाएगी। शहद निकालने वाली एक मशीन पर 5 डिब्बे लेने वाले किसानों को 7 हजार रुपये का अनुदान मिलता है।

मधुमक्खी पालन वित्तपोषण योजना

सरकार की ओर से शहद के छत्तों के निर्माण के लिए । कोलोनीज की खरीद, मधुमक्खी रखने के लिए बक्सों तथा उपकरणों की खरीद, शहद निकालने के लिए स्मोकर्स तथा बीवेल। ली नाइफ, हाईव टूलक्वीन गेटफीडरसोलरवैक्सएक्सट्रेक्टर, शहद रखने के लिए प्लास्टिक ड्रम्सरबड़ दस्ताने आदि के लिए इस योजना के तहत सुविधा दी जाती है। इतना ही नहीं मधुमक्खी। पालन के लिए खादी ग्रामोद्योग की ओर से भी ऋण उपलब्ध कराया जाएगा। इस ऋण का पांच साल में भुगतान करना होता है।

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रेशम कीट पालन

रेशम कीट पालन कृषि पर आधारित कुटीर उद्योग है। ग्रामीण क्षेत्र में ही कम लागत में इस उद्योग में शीघ्र उत्पादन प्रारंभ किया जा सकता है। रेशम उत्पादन में भारत चीन के बाद। दूसरे नंबर पर आता है। रेशम के जितने भी प्रकार हैं, उन सभी का उत्पादन किसी न किसी भारतीय इलाके में होता ही है। भारतीय बाजार में इसकी खपत भी काफी है। विशेषज्ञों के अनुसाररेशम उद्योग के विस्तार को देखते हुए इसमें रोजगार की काफी संभावनाएं हैं और आने वाले दिनों में इसका कारोबार और फलेगा-फूलेगा। फैशन उद्योग के काफी करीब होने के कारण भी इसकी मांग में शायद ही कभी कमी आएपिछले तीन दशकों से, भारत का रेशम उत्पादन धीरे-धीरे बढ़कर जापान और पूर्व सोवियत संघ देशों से ज्यादा हो गया है, जो कभी प्रमुख रेशम उत्पादक हुआ करते थे। भारत इस समय विश्व में चीन के बाद कच्चे सिल्क का दूसरा प्रमुख उत्पादक है। वर्ष 2009-10 में इसका 19690 टन उत्पादन हुआ था, जो वैश्विक उत्पादन का 15.5 फीसदी है। भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के साथ-साथ पांच किस्मों के रेशम लबरीटसर ओक टसरएरि और मुगा सिल्क का उत्पादन करने वाला अकेला देश है और यह चीन से बड़ी मात्रा में मलबरी कच्चे सिल्क और रेशमी वस्त्रों का आयात करता है। रेशम के सर्वाधिक उत्पादन में भारत द्वितीय स्थान पर है। साथ ही, विश्व में भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है । भारत में शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्यत: कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडुजम्मू व कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल में किया जाता है जबकि गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन झारखंडछत्तीसगढ़उड़ीसा तथा उत्तरपूर्वी राज्यों में होता है।

बारहवीं योजना के दौरान उत्प्रेरक विकास कार्यक्रम के रेशम -कीट पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। चाकी कीट पालन केन्द्र उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए कृषकों को चॉकी कीट की आपूर्ति करता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत आवृत्त वाणिज्यिक कृषकों से अपेक्षा की जाती है कि वे फसल स्थिरता सुनिश्चित करते हुए चाकी कीटों की आपूर्ति के पहले अपने कीटपालन गृहों का निर्माण कराए। इसके लिए बाकायदा अनुदान की व्यवस्था है। इसे केंद्र एवं राज्य सरकार केसाथ लाभार्थियों की हिस्सेदारी होती है। राज्य के बीजागारों हेतु भारत सरकार तथा राज्य के बीच 50:50 की हिस्सेदारी होती है। निजी बीजगारों के लिए भारत सरकार की ओर से 40 फीसदी, राज्य की ओर से 40 फीसदी एवं लाभार्थी की ओर से 20 फीसदी की हिस्सेदारी होती है।

शहतूत पौधारोपण विकास हेतु सहायता

यह घटक प्रति एकड़ रु.14,000 की इकाई लागत के साथ झाड़ीनुमा तथा वृक्ष पौधारोपण उगाने में सहायता प्रदान करता है, जिसमें रासायनिक उर्वरक, गोबर की खादकीटनाशक आदि निवेश शामिल है। इसके तहत केंद्र 50 फीसदी, राज्य 25 फीसदी और लाभार्थी की 25 फीसदी हिस्सेदारी होती है। अनुदान के संबंध में अधिक जानकारी के लिए लाभार्थी केंद्रीय रेशम बोर्ड से संपर्क कर सकते हैं। बारहवीं योजना के दौरान रेशम उत्पादन संबंधी विभिन्न कार्यकलापों के अंतर्गत लाभार्थियों को सहायता का विस्तार करना प्रस्तावित है जिसमें रेशमकीट पालनरेशमकीट अंडा उत्पादन धागाकरण, ऐंठनबुनाईकताईरंगाई तथा छपाई आदि के। साथ ही साथ कीट पालन तथा बीजागार गृहधागाकरण एवं बुनाई शेड तथा उपकरण एवं इसी प्रकार के अन्य मद निहित हैं। केंद्रीय रेशम बोर्डबीमा कंपनी को राज्य द्वारा भुगतान किए गए प्रिमीयम के 50 फीसदी की प्रतिपूर्ति करेगा तथा राज्य के रेशम उत्पादन विभाग तथा बीमा कंपनी दावे के निपटारा पर भी ध्यान देंगे। इसमें केंद्रीय रेशम बोर्ड 50 फीसदी, राज्य सरकार की ओर से 25 फीसदी और लाभार्थी की ओर से 25 फीसदी जाता है

मलबरी स्वावलंबन योजना  

इस योजना के अंतगर्त रेशम संचालनालय द्वारा शहतूत पोधारोपण प्रति 6,200 रूपये की मदद की जाती है। रेशम विकास एंव विस्तार कार्यक्रम, रेशम उत्पाद बिक्री एंव विपणन योजना के तहत भी राज्य सरकारें रेशम तैयार करने वालो की मदद करते है।

रेशम कीट पालन हेतु वित्तपोषण

रेशम की खेती से सम्बंधित कार्यकलापों में व्यस्त व्यष्टिगत किसान, स्वसहायता समूह, फर्म कम्पनियो को आर्थिक रूप से मदद दी जाती है। इस ऋण का भुगतान चार से नौ साल के अंदर करना होता है। कार्यकलाप के स्वरूप के आधार पर 4-9 वर्ष।

लाख कीट पालन

खेती के साथ किसान लाख कीटपालन कर मुनाफा कमा सकते हैं। लाख के कीट अत्यंत सूक्ष्म होते हैं तथा अपने शरीर से लाख उत्पन्न करके हमें आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक भाषा में लाख को 'लेसिफर लाखाकहा जाता है। लगभग 34 हजार लाख के कीड़े एक किलो रंगीन लाख तथा 14 हजार 4 सौ लाख के कीड़े एक किलो कुसुमी लाख पैदा करते हैं। लाख का प्रयोग दवाओंचुड़ियांजेवर के कुछ हिस्से बनानेविद्युत यंत्रों में वार्निश और पॉलिश बनाने में, विशेष प्रकार की सीमेंट और स्याही के बनाने में, ठप्पा बनाने आदि में होता है। भारत सरकार ने रांची के निकट नामकुम में लैक रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाया है। यहां लाख पर अनुसंधान कार्य हो रहे हैं।
लाख कीट पालन के जरिए तमाम लोग आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन रहे हैं। भारत लाख उत्पादन की दृष्टि से विश्व में सर्वप्रथम है। पूरे विश्व की कुल उत्पादन का करीब 80 प्रतिशत लाख भारत में होता है। यह झारखंडपश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात आदि में रोजगार का महत्वपूर्ण साधन है। भारत में 95 फीसदी लाख पैदावार अकेले पांच इसमें झारखंड राज्य करते हैं।

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Courtesy: Kurukshetra